श्री कृष्ण जन्मआष्ट्मी मुहर्त

इस साल श्री कृष्ण जन्मआष्ट्मी की शुभ मुहूर्त 11अगस्त सुबह 9 बजकर 6 मिनट से शुरू होंगी तथा यह अगली सुबह, अर्थात 12 अगस्त को 12 बजकर 16 मिनट मे समाप्त हो जाएगी |”

11अगस्त को ग्रहस्त मनुष्य जाती जन्मआष्ट्मी का पर्व मनाएंगे, तथा अगली सुबह 12 अगस्त को वैष्णव जाती जन्मआष्ट्मी का पर्व मनाएंगे, मथुरा, वृन्दावन द्वारका जैसे स्थानों मे 12 अगस्त को यह पर्व मनाया जायेगा |

तीसरे भाव मे शुक्र हो तो

तीसरे भाव के शुक्र होने पर जातक नाटकीय ढंग से अपनी मन की दशा ब्यक्त करता है, ऐसे जातक टीवी, सीरियल, नाटक, मंच इत्यादि मे काम करने वाले होते है, ऐसे लोग बेवजह हस सकते है, बेवजह रो सकते है, इनके अंदर नाटक करने की परिविर्ती जन्मजात होती है, अपने इसी गुणों के कारण वाह एक दिन कलाकार अवश्य बनते है, तीसरे भाव मे शुक्र जातक को बड़े भाई की पत्नी बनता है, |

ऐसे जातसक के जीवनसाथी काफी सुन्दर होते है, तथा ये अपने जीवनसाथी बदलने मे जरा भी नहीँ हिचकिचाते, जातक मे आलस्य भारी मात्र मे होती है, जिसकारण कभी कभी ऐसे जातक अपना नुकसान भी कर लेते है,

तीसरे भाव के जातको के अंदर चतुराई की मात्र अधिक होती है, जिससे वाह किसी भी ब्यक्ति को अपने वास मे कर लेते है, औऱ कभी कभी इनकी चतुराई इन्हे मुशीबत मे भी डाल देती है

मन्त्र शक्ति

मन्त्र वो शक्ति है, जो पल मे लोगो की मनोकामना पूर्ण कर दे, मन्त्र के तेज से संसार की ना मिलने वाली वस्तु भी इंसान के कदमो मे होती है, लेकिन कभी कभी मन्त्र साधना से घातक नुकसान देखे जाते है, 
प्राचीन काल मे रोग मन्त्र के उच्चारण से ही ठीक हो जाते थे, इसलिए वैध से ज्यादा लोग साधु, फ़क़ीर, तांत्रिक, ओझा, इत्यादि के ब्यापार काफी फले फुले रहते है, परन्तु विज्ञान  के इस दौर मे रोगों के उपचार मन्त्र द्वारा करना अंधविश्वास कहलाता है |मन्त्र तीन प्रकार के होते है”,… स्त्रीलिंग, पुल्लिंग तथा नपुंसक !”मंत्रो के उच्चारण से मन्त्र का कल्याण कार्य जाना जाता है, अर्थात मन्त्र को पढ़कर जाना जा सकता है की यह मन्त्र किस देवता से जुडा है, अथवा इसका कार्य क्या है?? 
मंत्रो मे भी बिशेषता: अनेक प्रकार होते है,……………… जैसे सात्विक मन्त्र ,दैविक मन्त्र,  वैदिक मन्त्र, तांत्रिक मन्त्र इत्यादि, 

सात्विक मन्त्र ~~~~~~~~~~~
सात्विक वैसे मन्त्र होते है, जी के उच्चारण मात्र से मन मे सात्विकता का वास हो जाता है, यह किसी देवी देवताओं से जुडा नहीँ होता, इनका काम ही होता है सत्य से पहचान कराना, ऐसे मन्त्र के सही उच्चारण से लोगो के जीवन से अंधेरा सदा सदा के लिए गायब हो जाता है, तथा उन्हें खुशहाल रखने मे इन मंत्रो का बड़ा हाथ होता है, सात्विक मन्त्र से लोगो की कुबूद्धि नस्ट होकर सुबुद्धि का संचरण होता है, “अनजाने मे लोग कभी कभी गलत मन्त्र भी पढ़ लेते है, लेकिन इनके गलत पढ़े जाने पर भी हानि नहीँ होती |”

दैविक मन्त्र ~~~~~~~~~
दैविक मन्त्र वैसे मन्त्र होते है, जो मूलतः किसी देवताओं से सम्भन्ध रखता हो, तथा उस मन्त्र के उच्चारण से किसी ख़ास देव को प्रसंन्न किया जाता हो, ऐसे मन्त्र देव साधना मे अति आवश्यक होते है, “बगैर दैविक मन्त्र उच्चारण जे देवताओं की पूजा मान्य नहीँ होती, “| जिस किसी ख़ास देव की पूजा हो रही हो, तो विधिवत उसी देव के लिए ऐसे मंत्रो का उच्चारण किया जाता है, दैविक मंत्रो मे काफी शक्ति होती है, इससे ग्रहदोष भी शांत हो जाते है, परन्तु खंडित मन्त्र या गलत मन्त्र उच्चारण से कोई परिणाम नहीँ मिलता, कभी कभी गलत मन्त्र उच्चारण गलत परिणाम भी देते देखे गए है, “”
दैविक मंत्रो मे विधिवत आसन्न ग्रहण करके इन मंत्रो का पुरे नियम पूर्वक उच्चारण से इसके अच्छे परिणाम मिलते है, किन्तु अगर आप निरंतर भी दैविक मंत्रो का उच्चारण करे तो भी आपको इसके फल मिलेंगे, गलत मन्त्र उच्चारण कभी कभी समस्याओ को निमंत्रण भी दे देती है, “|

तांत्रिक मन्त्र ~~~~~~~~~

तांत्रिक मन्त्र मूलतः तांत्रिको, द्वारा प्रतिष्ठित मन्त्र होते है, इन मंत्रो के उच्चारण मात्र से ही आपकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है, ऐसे मन्त्र शक्तिशाली होने के साथ साथ खतरनाक होते है परन्तु आजकल देखा जाता है, ऐसे मन्त्र इंटरनेट की माध्यम से बड़ी आसानी से प्राप्त कर लेते है, औऱ बगैर इसकी सावधानी औऱ असावधानी जाने लोग इन मंत्रो का उच्चारण शुरू कर देते है, तांत्रिक मन्त्र, आपको राजा से रंक,या रंक से राजा बना देता है, दुश्मनों का नाश करता है, मनपसंद युवक युवती को तांत्रिक मंत्रो द्वारा वशीकरण भी किया जाता है, ऐसे मन्त्र को केवल तांत्रिक क्रिया करते समय उच्चारण किया जाना चाहिए, बगैर इसकी पूर्ण जानकारी के ये आपका पतन  करने मे सक्छम होता है, “|
अगर कोई ब्यक्ति रोगों से घिरा हो तो उस घर मे तांत्रिक मन्त्र उच्चारण घातक सिद्ध हो सकता है, “कभी कभी देखा जाता है की लोग बस फालतू के कामना करके किसी भी मन्त्र को उच्चरित करना प्रारम्भ कर देते है, औऱ बाद मे यदि कोई अनिस्ट हो जाता है तो लोग समझ भी नहीँ पाते की ऐसा कैसे हो गया, जबकि दोषी ओ स्वयं होते है, 
सुचना -” किसी भी मन्त्र को उच्चारण करने से पहले उसकी  पूरी तरह से जांच पड़ताल अवश्य कर ले, अथवा आप लाभ की जगह स्वयं का नुकसान कर लेंगे |””

द्वितीय भाव मे शुक्र

द्वितीय भाव मे शुक्र होने पर जातक काफी कलात्मक परिवृति का होता है, वाह अपने आँखों से अपने कला की झलक देखकर, कोरे कागज पर उतारता है औऱ उसमे रंग भरता है, ऐसे जातक काफी साफ सफाई पसंद कैरट है, औऱ खान पिने मे भी साफ सफाई रखते है जिससे काफी लम्बी अवधि तक जीते है, ऐसे जातक निडर स्वाभाविक के होते है, औऱ अपने परिवार से मदद लेने मे हिचकिचते है, इन्हे अपनी तारीफ सुनना पसंद होता है, जिसके लिए ये तटपरता से काम करते है, इनकी महिला सहपाठी, या मित्र अधिक होते है तथा उन सबसे बिशेष लगाव भी रखते है |

द्वितीय भाव का शुक्र जातक को मनोरंजन पसंद करने वाला होता है |

प्रथम भाव मे शुक्र

प्रथम भाव मे शुक्र होने पर जातक सुन्दर औऱ गुणों से भरपूर होता है, शुक्र भौतिक सुखो का दाता है, इसलिए सभी तरह के सुख जातक के पास होते है, शुक्र दैत्यों के गुरु है इसकारण दैत्य सामान कु बुद्धि जातक के पास अधिक होती है, जातक शारब, कबाब आदि से कभी परहेज नहीँ करता |

जातक कलात्मक चीजों मे अत्यधिक रूचि रखता है, औऱ सुन्दर परिधान तथा सजाने सवारने वाले कामों से जुड़ाव रखता है,

अपनी छवि राजा के सामान दुसरो के पास प्रदर्शित करता है, ऐसे जातक थोड़े भोग बिलासी परिविरति के होते है, औऱ शुक्र लग्न भाव मे होने के कारण विपरीत योनि के प्रति विशेष झुकाव रखते है |

यदि शुक्र की महादशा या शुक्र की अन्तर्दशा चल रही हो, तो चरित्र से जुडी गंभीर आरोपों का भी सामना करना पड़ सकता है,

ऐसे जातक जरा मनमौजी होते है, औऱ किसी भी कार्य को पूरी दछता से पूर्ण करने की योग्यता रखते है, काम के प्रति इनका विशेष आकर्षण देखा गया है, औऱ इन्हे काम सुखो के लिए ज्यादा चेस्टा भी नहीँ करना पड़ता है,

केतु गृह शांति उपाए

केतु गृह शांति मन्त्र :

ॐ क्लीं क्लीं क्लौं सः केतवे नमः

केतु भी राहु की तरह छाया गृह है, औऱ यश भी जिस भाव मे हो, उसके फल कम कर देता है, केतु मोक्छ दाता गृह है,साथ साथयह एक विचित्र गृह है जो रंग रूप बदलने मे माहिर होता है,

केतु गृह शांत करने के उपाए :

केतु गृह शांति के लिए कुत्तो औऱ जानवरो को कभी हिन् भावना से नहीँ देखना चाहिए, उन्हें गुड़मिश्रित रोटी खिलानी चाहिए, साँप को कभी नहीँ मारना चाहिए, तथा दान धर्म करने से केतु गृह ठीक होता है,

राहु गृह शांति उपाए

राहु गृह शांति मन्त्र :

ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहुवे नमः

राहु एक छाया गृह है, यह जिस भाव मे भी बैठ जायेगा उसके फल को कम कर देता है, इसे कलयुग का राजा कहते है, राहु हर बुरे कामों के लिए जाना जाता है, कभी कभी बुरे भावों मे अच्छे फल भी देता है

राहु गृह शांत करने के उपाए :

राहु धूर्त, छल, कपट, षड्यंत्र कारक गृह है, अगर राहु अशांत है तो जातक बुरे आदतों से लीप्त होता है, इसलिए इसे संत करने के लिए कोयले को पानी मे बहाये, मूली पत्तों सहित दान करे |